मुझपे मेरा गर्व मुझपे मेरा गर्व, मुझे सिखाता है स्वम से प्रेम करना मुझपे मेरा गर्व सिखाता है, हिम्मत नहीं हारना मुझपे मेरा गर्व सिखाता है, अटूट विश्वास से जीवन जीना मेरा गर्व मुझे सिखाता है, विपरीत परिस्थिति से निकलना, जो मुझे तोड़ कर बिखेर सकते थे, मुझे मेरा गर्व सिखाता है परिवार को जोड़े रखना, क्यूंकि उनसे ही मेरा वजूद कायम है इस दुनिया में मुझे मेरा गर्व सिखाता है, रोज़ रोज़ एक ही काम को उसी जोश से करना, क्यूंकि जीवन को उबाऊ बना कर जिया नहीं जा सकता स्री का गर्व उसके माथे में लगे कुमकुम की तरह है हमेशा उसे ऊर्जा से भर देने वाला स्वयं में गर्व करना अभिमान की श्रेणी में नहीं आँका जाना चाहिए, गर्व ऐसा हो जो जीवन में आगे ले जाये, ईर्ष्या द्वेष अभिमान को कोसों दूर रखे, मेरा गर्व मुझे जीवन की छोटी छोटी खुशि यों में खुश रहने की प्रेरणा देता है, मेरा गर्व मुझे निरंतर मेरे होने की प्रेरणा देता है.
हंसती खेलती , शोख अल्हड सी कभी , स्कूल छुट्टी से , घर तक दौड़ी थी कभी , खुश होने के कई बहाने थे , नाराज़ भी होती थी कभी , खूबसूरत फूलों को छू कर , खुद ही महक उठती थी कभी , छोटी छोटी ख्वाइशों को खुद में संजोती थी कभी , किसी सपने को दिन - रात देखने की ज़िद थी अभी , डर के माँ आँचल में छिपी थी कभी , दुनिया से लड़कर चुप , सोचने बैठी थी अभी , पापा के डर से पार्टी आधी छोड़ी थी कभी , ....... पर अब न जाने क्यों ? के भरे बाज़ार में भी डर के सहमी खड़ी हूँ मैं , हर रिश्ते में , खुद को साबित करने के लिए अड़ी हूँ मैं , हर ख्वाइश को फुसला के सुला दिया मैंने , अब भी कुछ सपनो को कन्धों में लिए कड़ी हूँ मैं , कुछ वक़्त साथ बिताकर , उखड़ सी जाती हु मैं , अपने ही माँ - बाप से परायों की तरह मिल आती हूँ मैं , ये कैसे हालात है मेरी ज़िन्दगी में की अब , हँसते हुए भी खुद को चुप करा देती हूँ मैं , जिनके हौसलों ने जीना सिखाया मुझे आज ,
आम सी ज़िन्दगी , हम कितना मामूली सा मान देते है अपनी आम सी ज़िन्दगी को, क्या सचमुच हमारी ज़िन्दगी जिससे हम रोज़ कभी ख़ुशी से कभी गुस्से से कभी अनमने ढंग से बच जी जाते है क्या वो इतनी आम सी है. ज़िन्दगी रोज़ नयी आशाओं के साथ एक नया दिन लेकर आती है, हम अपनी सोच से अपने मन अवसाद से उसे निराश कर देते है. कौन कहता है ज़िन्दगी हमेशा निराशा से भरी होती है, या किसी ज़िन्दगी रोज़ नए मौके देती है. रोज़ की दिनचर्या से अगर हम 10 दिन भी अलग रह लें तो इसी आम रोज़ की दिनचर्या को मिस करने लगते है. जाने अनजाने ये हमारी ज़िन्दगी का अभिन्न हिस्सा बन चूका है. और कौन अपनी ज़िन्दगी में होने वाली आम घटनाओ को रोज़ जीकर भी खुश नहीं होता ? कौन नहीं चाहता रोज़ सुबह उठ अपनी खिड़की से खुले आकाश का वही हिस्सा देखना जो आप हमेशा से देखते आ रहे है. कौन नहीं चाहता घर के उस कोने में सालों से रखे गमले में पानी डालना. कौन नहीं देखना चाहता दीवारों में टंगी तस्वीरों को धुंधली होते देखना, कौन नहीं चाहता रोज़ अपनी फेवरेट कप में चाय या कॉफी पीना, हम रोज़ घर में आते ही एक निश्चित जगह में निश्चित काम को निपटाते है, ये सारे काम निरंत
Comments
Post a Comment