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गुनगुनाते ख़्यालों से तुम

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गुनगुना रही थी ख़्यालों में, तुम बूंद बूँद टपक रहे थे यादों से, छन कर मेरी मुस्कुराहटों में आ गिरे तुम, और अब हल्के हल्के गुनगुना रही हूँ तुम्हे।।

मुझपे मेरा गर्व

मुझपे मेरा गर्व मुझपे मेरा गर्व, मुझे सिखाता है स्वम से प्रेम करना मुझपे मेरा गर्व सिखाता है, हिम्मत नहीं हारना मुझपे मेरा गर्व सिखाता है, अटूट विश्वास से जीवन जीना मेरा गर्व मुझे सिखाता है, विपरीत परिस्थिति से निकलना, जो मुझे  तोड़ कर बिखेर सकते थे, मुझे मेरा गर्व सिखाता है परिवार को जोड़े रखना, क्यूंकि उनसे ही मेरा वजूद कायम है इस दुनिया में मुझे मेरा गर्व सिखाता है, रोज़ रोज़ एक ही काम को उसी जोश से करना, क्यूंकि जीवन को उबाऊ बना कर जिया नहीं जा सकता स्री का गर्व उसके माथे में लगे कुमकुम की तरह है हमेशा उसे ऊर्जा से भर देने वाला स्वयं में गर्व करना अभिमान की श्रेणी में नहीं आँका जाना चाहिए, गर्व ऐसा हो जो जीवन में आगे ले जाये, ईर्ष्या द्वेष अभिमान को कोसों दूर रखे, मेरा गर्व मुझे जीवन की छोटी छोटी खुशि यों में खुश रहने की प्रेरणा देता है, मेरा गर्व मुझे निरंतर मेरे होने की प्रेरणा देता है.

पाक़ीज़ा आखें

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उसकी आँखे इतनी अजीब थी, हां अजीब आप अपने दिल के हाल उसकी आँखों में देख सकते थे, वो भी जो आप सबसे छुपाना चाहते थे, आप हंस कर मिले तो उसकी आँखें  मुस्क़ुरती हुए दिखे, दुःख हो आपके भीतर तो आँखों में उदासी सी छायी रहती थी, उसकी आंखों में  पूरी दुनिया अपना वो चेहरा देख सकती थी जो वो सबसे छुपाया गया हो. डरती थी वो की कही कोई उससे नाराज़ न हो जाये, पर क्या करे बेचारी, उसकी पाक़ीज़ा आखें खुदा की नेअमत थी. सारे जहाँ को अपनी नज़रों से देखकर दिल में हुक उठती उसके की कहीं किसी कोने में कोई तो हो जो उसके आंखे पढ़ सके, जो ये कह सके दुनिया के तमाम दुखों को भूल जाओ जैसे मैं भूल जाता हूँ तुम्हे देख कर.  image source : google 

आम सी ज़िन्दगी

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आम सी ज़िन्दगी , हम कितना मामूली सा मान देते है अपनी आम सी ज़िन्दगी को, क्या सचमुच हमारी ज़िन्दगी जिससे हम रोज़ कभी ख़ुशी से कभी गुस्से से कभी अनमने ढंग से बच जी जाते है क्या वो इतनी आम सी है. ज़िन्दगी रोज़ नयी आशाओं के साथ एक नया दिन लेकर आती है, हम अपनी सोच से अपने मन अवसाद से उसे निराश कर देते है. कौन कहता है ज़िन्दगी हमेशा निराशा से भरी होती है, या किसी ज़िन्दगी रोज़ नए मौके देती है. रोज़ की दिनचर्या से अगर हम 10 दिन भी अलग रह लें तो इसी आम रोज़ की दिनचर्या को मिस करने लगते है. जाने अनजाने ये हमारी ज़िन्दगी का अभिन्न हिस्सा बन चूका है. और कौन अपनी ज़िन्दगी में होने वाली आम घटनाओ को रोज़ जीकर भी खुश नहीं होता ?  कौन नहीं चाहता रोज़ सुबह उठ अपनी खिड़की से खुले  आकाश का वही हिस्सा देखना जो आप हमेशा से देखते आ रहे है. कौन नहीं चाहता घर के उस कोने में सालों से  रखे गमले में पानी डालना. कौन नहीं देखना चाहता दीवारों में टंगी तस्वीरों को धुंधली होते देखना, कौन नहीं चाहता रोज़ अपनी फेवरेट कप में चाय या कॉफी पीना, हम रोज़ घर में आते ही एक निश्चित जगह में निश्चित काम को निपटाते है,  ये सारे काम निरंत

गुस्सा

कभी किसी लड़की का गुस्सा देखा है तुमने, कितनी तहों में छुपा रहता है, कितनी बातों को समेटे खुद में, अंदर ही अंदर बस दबा रहता है। इस डर से के कही बहा न ले जाये उन रिश्तों को जिनकी आदत है उसे। हर बार जब तुम टाल जाते हो उसके ज़रूरी काम को अपने बहोत ज़रूरी काम के आगे, वो तब भी गुस्सा होती है, पर तुम्हे उसके समझदारी के आगे गुस्सा नज़र नहीं आता, सुबह से शाम ऑफिस के काम से वो भी थक के ऊब चुकी होती है, लेकिन तुम आके जब उससे लाड़ प्यार की मांग करते हो, वो तब भी गुस्सा होती है, पर तुम्हें उसका मासूम चेहरा नज़र आता है, गुस्से में दहकता दिल नहीं।  तुम्हारे लेट रिप्लाई से नहीं तुम्हारे नो रिप्लाई से वो गुस्सा होती है, तुम्हारे रोज़ रोज़ नए बहाने से नहीं,तुम्हारे रोज़ रोज़ की तस्सली देने से वो गुस्सा होती है। तुम्हारे सच कहने से नहीं, तुम्हारे झूठ को छुपाने से वो गुस्सा होती है, कह के तुम्हारी भूलने की आदत से वो गुस्सा होती है,तुम्हारी अपनी कही बात और अपने ही दिए वादे को पूरा ना कर पाने में वो गुस्सा होती है, उससे सिर्फ अच्छाई की उम्मीद रखने वाले तुम्हारे भर्म से वो गुस्सा होती है, वो यूँ ही अपने अंद

कैसे ढालूँ लब्ज़ो में तुझे

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कैसे ढालूँ लब्ज़ो में तुझे,  तू ठहरता ही नहीं कहीं ,             रोज़ उड़कर आ जाता है मेरे ख़्यालों में,          कभी ज़ुल्फ़ों से खलता है मेरी,  कभी उँगलियों से निशान बनाता है हथेली पर, अपनी पलकों को खोल देता है मेरे लिए ,               बिना बोले मेरे कह जाता है , हज़ार फलसफे खुद ही अकेले, टकटकी लगाए देखता है मुझे तू घण्टों , जैसे पिघल कर मुझे गंगा बना जायेगा                                 मोहब्बत के हर पल को जीता  है मेरे साथ ऐसे,       जैसे मर के मुझे अमर बना जायेगा, कैसे ढालूँ शब्दो में तुझे ,तू ठहरता  ही नहीं कही.. 

सपोर्ट सिस्टम

पता है सपोर्ट सयतम कौन होता है कैसा होता है? ये काम कैसे करता है? और क्या महसूस करता है. मैं हु सपोर्ट सिस्टम,तुम्हारे टूटते लड़खड़ाते हौसलों को हमेशा मैंने संभाल है, जब जब तुम हारे हो, मैंने खुद को तुम्हारे सहारे के लिए तैयार किया, खुद डर कर काँपती हूँ, निराश होकर भी, हौसलों को जगाती हूँ,क्योंकि मुझे पता है तुम्हे मुझसे ही हौसला मिलता है. चूल्हे की आखरी बुझती आग की तरह होता है मेरा हाल, मुझे जलना भी है और सुलगना भी है. मैंने अपने हौसलो को टूटते  है तुम जब जब हौसला सपोर्ट लेकर जाते हो और गवां आते हो उसे जुए की तरह निरर्थक प्रयास में, तो मुझे दुःख होता है. मेरे हौसलो को टूटा हुआ देख रो पड़ती हु मैं इन्हें देख कर भी तुम नहीं पसीजते? गिर कर सुख जाते है बेचारे! सुनो! अब थक गयी हूँ मैं, मेरा मुझ पर से सपोर्ट हैट गया है. अब आगे तुम्ही संभालो, मैं यही रूकती हूँ, थोड़ा सुस्ता लेती हूँ, तुम आगे चल कर देखो, मैं पीछे ही हूँ लेकिन अब आराम चाहती हूँ, थोड़े नए हौसले रास्ते से तुम ही ले आना, शायद मेरे काम आ जाये.