पाक़ीज़ा आखें
उसकी आँखे इतनी अजीब थी, हां अजीब आप अपने दिल के हाल उसकी आँखों में देख सकते थे, वो भी जो आप सबसे छुपाना चाहते थे, आप हंस कर मिले तो उसकी आँखें मुस्क़ुरती हुए दिखे, दुःख हो आपके भीतर तो आँखों में उदासी सी छायी रहती थी, उसकी आंखों में पूरी दुनिया अपना वो चेहरा देख सकती थी जो वो सबसे छुपाया गया हो.
डरती थी वो की कही कोई उससे नाराज़ न हो जाये, पर क्या करे बेचारी, उसकी पाक़ीज़ा आखें खुदा की नेअमत थी. सारे जहाँ को अपनी नज़रों से देखकर दिल में हुक उठती उसके की कहीं किसी कोने में कोई तो हो जो उसके आंखे पढ़ सके, जो ये कह सके दुनिया के तमाम दुखों को भूल जाओ जैसे मैं भूल जाता हूँ तुम्हे देख कर.
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