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कैसे ढालूँ लब्ज़ो में तुझे

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कैसे ढालूँ लब्ज़ो में तुझे,  तू ठहरता ही नहीं कहीं ,             रोज़ उड़कर आ जाता है मेरे ख़्यालों में,          कभी ज़ुल्फ़ों से खलता है मेरी,  कभी उँगलियों से निशान बनाता है हथेली पर, अपनी पलकों को खोल देता है मेरे लिए ,               बिना बोले मेरे कह जाता है , हज़ार फलसफे खुद ही अकेले, टकटकी लगाए देखता है मुझे तू घण्टों , जैसे पिघल कर मुझे गंगा बना जायेगा                                 मोहब्बत के हर पल को जीता  है मेरे साथ ऐसे,       जैसे मर के मुझे अमर बना जायेगा, कैसे ढालूँ शब्दो में तुझे ,तू ठहरता  ही नहीं कही..