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कैसे ढालूँ लब्ज़ो में तुझे

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कैसे ढालूँ लब्ज़ो में तुझे,  तू ठहरता ही नहीं कहीं ,             रोज़ उड़कर आ जाता है मेरे ख़्यालों में,          कभी ज़ुल्फ़ों से खलता है मेरी,  कभी उँगलियों से निशान बनाता है हथेली पर, अपनी पलकों को खोल देता है मेरे लिए ,               बिना बोले मेरे कह जाता है , हज़ार फलसफे खुद ही अकेले, टकटकी लगाए देखता है मुझे तू घण्टों , जैसे पिघल कर मुझे गंगा बना जायेगा                                 मोहब्बत के हर पल को जीता  है मेरे साथ ऐसे,       जैसे मर के मुझे अमर बना जायेगा, कैसे ढालूँ शब्दो में तुझे ,तू ठहरता  ही नहीं कही.. 

सपोर्ट सिस्टम

पता है सपोर्ट सयतम कौन होता है कैसा होता है? ये काम कैसे करता है? और क्या महसूस करता है. मैं हु सपोर्ट सिस्टम,तुम्हारे टूटते लड़खड़ाते हौसलों को हमेशा मैंने संभाल है, जब जब तुम हारे हो, मैंने खुद को तुम्हारे सहारे के लिए तैयार किया, खुद डर कर काँपती हूँ, निराश होकर भी, हौसलों को जगाती हूँ,क्योंकि मुझे पता है तुम्हे मुझसे ही हौसला मिलता है. चूल्हे की आखरी बुझती आग की तरह होता है मेरा हाल, मुझे जलना भी है और सुलगना भी है. मैंने अपने हौसलो को टूटते  है तुम जब जब हौसला सपोर्ट लेकर जाते हो और गवां आते हो उसे जुए की तरह निरर्थक प्रयास में, तो मुझे दुःख होता है. मेरे हौसलो को टूटा हुआ देख रो पड़ती हु मैं इन्हें देख कर भी तुम नहीं पसीजते? गिर कर सुख जाते है बेचारे! सुनो! अब थक गयी हूँ मैं, मेरा मुझ पर से सपोर्ट हैट गया है. अब आगे तुम्ही संभालो, मैं यही रूकती हूँ, थोड़ा सुस्ता लेती हूँ, तुम आगे चल कर देखो, मैं पीछे ही हूँ लेकिन अब आराम चाहती हूँ, थोड़े नए हौसले रास्ते से तुम ही ले आना, शायद मेरे काम आ जाये. 

साथ चलते रास्ते

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उम्मीदों की तरह हर पल साथ चलते रास्ते , ना  थकते, ना रुकते, ना उम्मीद कभी छोड़ते ये रास्ते , कई ख्वाइशों, अरमानों को लेकर चलते ये रास्ते, नए हौसलों को छू कर उम्मीद की डोर थामे रास्ते, हर कदम पर, अपनों सा एहसास देते ये रास्ते, हर कदम को मज़िल देकर,खुद खामोश रहते ये रास्ते, ज़िन्दगी के लम्बे सफर को नया नाम देते ये रास्ते, कभी तपती धुप में झुलस कर, ठंडी छॉव की राह देखते ये रास्ते, बारिश की बूंदों में भीगे, हँसते गुनगुनाते भी ये रास्ते, ज़िन्दगी की खुशियों में गीत गाते ये रस्ते, मौत के मातम में खामोश हो जाते ये रास्ते, हम तो शायद मिट भी जाएँ, ज़िन्दगी हमारी थम भी जाये, पर ना जाने कहाँ जाने को निकले, ना थमते, ना रुकते, ना उम्मीद छोड़ते ये रास्ते।

संस्कारों रिवाज़ों नाम पे

संस्कारों रिवाज़ों नाम पे , क्यों बुज़दिल बनायीं जाती हूँ ? नारी के रूप में जन्म को , क्यों हर बार कोसी जाती हूँ ? स्वच्छ आकाश मेरा भी अधिकार है , क्यों मैं पंखों को तरसी जाती हूँ ? समाज के निर्माण में दो ही तो अंश हैं , फिर क्यों नारी सजावटी हर पल है ? बेटी सुरक्षा , नारी अधिकार   है सिर्फ बातों में , क्यों नहीं सच में ये हर मानव की आँखों में ?

सुनहरे रंग से तुम

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सुनहरे रंग से तुम , आते हो तो निखर   सी जाती हूँ , कुछ कह देते हो तुम , बस यूँ ही , मैं भी बस , यूँ ही समझ जाती हूँ , बातों   का सिलसिला कितना लम्बा हो सकता है , ये जाना मैंने तुमसे उस रात के बाद , मुझे हर पल घेरी रहती हैं निगाहें तुम्हारी , कुछ पल गुज़र जाता है यूँ ही शर्माते शर्माते , आवाज़ की कशिश इतनी गहरी   है तुम्हारे , मेरे अंदर तुम पुकारते हो हर बार , सुनहरे रंग से तुम , आते हो तो निखर जाती हूँ हर बार। picture courtesy- google

महक उठती थी कभी

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हंसती खेलती , शोख अल्हड सी   कभी , स्कूल   छुट्टी से , घर तक दौड़ी थी कभी , खुश होने के कई बहाने थे , नाराज़ भी होती थी कभी , खूबसूरत फूलों को छू कर , खुद ही महक उठती थी कभी , छोटी छोटी ख्वाइशों को खुद में संजोती थी कभी , किसी सपने को दिन - रात देखने की ज़िद थी अभी , डर के माँ आँचल में छिपी थी कभी , दुनिया से लड़कर चुप , सोचने बैठी थी अभी , पापा के डर से पार्टी आधी छोड़ी थी कभी , ....... पर अब न जाने क्यों ? के भरे बाज़ार में भी डर के सहमी खड़ी हूँ मैं , हर रिश्ते में , खुद को साबित करने के लिए अड़ी हूँ मैं , हर ख्वाइश को फुसला के सुला दिया मैंने , अब भी कुछ सपनो को कन्धों में लिए कड़ी हूँ मैं , कुछ वक़्त साथ बिताकर , उखड़ सी जाती हु मैं , अपने ही माँ - बाप से परायों की तरह मिल आती हूँ मैं , ये कैसे हालात है मेरी ज़िन्दगी में की अब , हँसते हुए भी खुद को चुप करा देती हूँ मैं , जिनके हौसलों ने जीना सिखाया मुझे आज ,