संस्कारों रिवाज़ों नाम पे




संस्कारों रिवाज़ों नाम पे,
क्यों बुज़दिल बनायीं जाती हूँ?
नारी के रूप में जन्म को,
क्यों हर बार कोसी जाती हूँ?
स्वच्छ आकाश मेरा भी अधिकार है,
क्यों मैं पंखों को तरसी जाती हूँ?
समाज के निर्माण में दो ही तो अंश हैं,
फिर क्यों नारी सजावटी हर पल है?
बेटी सुरक्षा, नारी अधिकार  है सिर्फ बातों में,

क्यों नहीं सच में ये हर मानव की आँखों में?

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