Posts

Showing posts from March, 2016

साथ चलते रास्ते

Image
उम्मीदों की तरह हर पल साथ चलते रास्ते , ना  थकते, ना रुकते, ना उम्मीद कभी छोड़ते ये रास्ते , कई ख्वाइशों, अरमानों को लेकर चलते ये रास्ते, नए हौसलों को छू कर उम्मीद की डोर थामे रास्ते, हर कदम पर, अपनों सा एहसास देते ये रास्ते, हर कदम को मज़िल देकर,खुद खामोश रहते ये रास्ते, ज़िन्दगी के लम्बे सफर को नया नाम देते ये रास्ते, कभी तपती धुप में झुलस कर, ठंडी छॉव की राह देखते ये रास्ते, बारिश की बूंदों में भीगे, हँसते गुनगुनाते भी ये रास्ते, ज़िन्दगी की खुशियों में गीत गाते ये रस्ते, मौत के मातम में खामोश हो जाते ये रास्ते, हम तो शायद मिट भी जाएँ, ज़िन्दगी हमारी थम भी जाये, पर ना जाने कहाँ जाने को निकले, ना थमते, ना रुकते, ना उम्मीद छोड़ते ये रास्ते।

संस्कारों रिवाज़ों नाम पे

संस्कारों रिवाज़ों नाम पे , क्यों बुज़दिल बनायीं जाती हूँ ? नारी के रूप में जन्म को , क्यों हर बार कोसी जाती हूँ ? स्वच्छ आकाश मेरा भी अधिकार है , क्यों मैं पंखों को तरसी जाती हूँ ? समाज के निर्माण में दो ही तो अंश हैं , फिर क्यों नारी सजावटी हर पल है ? बेटी सुरक्षा , नारी अधिकार   है सिर्फ बातों में , क्यों नहीं सच में ये हर मानव की आँखों में ?

सुनहरे रंग से तुम

Image
सुनहरे रंग से तुम , आते हो तो निखर   सी जाती हूँ , कुछ कह देते हो तुम , बस यूँ ही , मैं भी बस , यूँ ही समझ जाती हूँ , बातों   का सिलसिला कितना लम्बा हो सकता है , ये जाना मैंने तुमसे उस रात के बाद , मुझे हर पल घेरी रहती हैं निगाहें तुम्हारी , कुछ पल गुज़र जाता है यूँ ही शर्माते शर्माते , आवाज़ की कशिश इतनी गहरी   है तुम्हारे , मेरे अंदर तुम पुकारते हो हर बार , सुनहरे रंग से तुम , आते हो तो निखर जाती हूँ हर बार। picture courtesy- google

महक उठती थी कभी

Image
हंसती खेलती , शोख अल्हड सी   कभी , स्कूल   छुट्टी से , घर तक दौड़ी थी कभी , खुश होने के कई बहाने थे , नाराज़ भी होती थी कभी , खूबसूरत फूलों को छू कर , खुद ही महक उठती थी कभी , छोटी छोटी ख्वाइशों को खुद में संजोती थी कभी , किसी सपने को दिन - रात देखने की ज़िद थी अभी , डर के माँ आँचल में छिपी थी कभी , दुनिया से लड़कर चुप , सोचने बैठी थी अभी , पापा के डर से पार्टी आधी छोड़ी थी कभी , ....... पर अब न जाने क्यों ? के भरे बाज़ार में भी डर के सहमी खड़ी हूँ मैं , हर रिश्ते में , खुद को साबित करने के लिए अड़ी हूँ मैं , हर ख्वाइश को फुसला के सुला दिया मैंने , अब भी कुछ सपनो को कन्धों में लिए कड़ी हूँ मैं , कुछ वक़्त साथ बिताकर , उखड़ सी जाती हु मैं , अपने ही माँ - बाप से परायों की तरह मिल आती हूँ मैं , ये कैसे हालात है मेरी ज़िन्दगी में की अब , हँसते हुए भी खुद को चुप करा देती हूँ मैं , जिनके हौसलों ने जीना सिखाया मुझे आज ,