कैसे ढालूँ लब्ज़ो में तुझे, तू ठहरता ही नहीं कहीं , रोज़ उड़कर आ जाता है मेरे ख़्यालों में, कभी ज़ुल्फ़ों से खलता है मेरी, कभी उँगलियों से निशान बनाता है हथेली पर, अपनी पलकों को खोल देता है मेरे लिए , बिना बोले मेरे कह जाता है , हज़ार फलसफे खुद ही अकेले, टकटकी लगाए देखता है मुझे तू घण्टों , जैसे पिघल कर मुझे गंगा बना जायेगा मोहब्बत के हर पल को जीता है मेरे साथ ऐसे, जैसे मर के मुझे अमर बना जायेगा, कैसे ढालूँ शब्दो में तुझे ,तू ठहरता ही नहीं कही..
सुनहरे रंग से तुम , आते हो तो निखर सी जाती हूँ , कुछ कह देते हो तुम , बस यूँ ही , मैं भी बस , यूँ ही समझ जाती हूँ , बातों का सिलसिला कितना लम्बा हो सकता है , ये जाना मैंने तुमसे उस रात के बाद , मुझे हर पल घेरी रहती हैं निगाहें तुम्हारी , कुछ पल गुज़र जाता है यूँ ही शर्माते शर्माते , आवाज़ की कशिश इतनी गहरी है तुम्हारे , मेरे अंदर तुम पुकारते हो हर बार , सुनहरे रंग से तुम , आते हो तो निखर जाती हूँ हर बार। picture courtesy- google
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